
कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक के पीता है, वही अब श्रीलंका के साथ हो रहा है। श्रीलंका चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट BRI का हिस्सा बनकर यह भलि-भांति देख चुका है कि चीन के साथ साझेदारी करना किसी देश को कितना भारी पड़ सकता है। यही कारण है कि अब श्रीलंका ना सिर्फ खुशी-खुशी भारत की ओर से दी जाने वाली मदद को स्वीकार कर रहा है, बल्कि सहायता मांगने के लिए भारत के पास ही आ रहा है। इसी महीने की शुरुआत में भारत ने कोलंबो में 10 टन की राहत सामाग्री भेजी थी, जिसमें ज़रूरी दवा और अन्य मेडिकल सप्लाई शामिल थी। रोचक बात यह है कि चीन भी इससे पहले श्रीलंका को राहत सामाग्री भेज चुका है। चीन ने मार्च महीने में श्रीलंका को 50 हज़ार मास्क और 1000 टेस्टिंग किट्स भेजी थी, परंतु यह श्रीलंका को लुभाने के लिए किसी काम नहीं आया।
ऐसा इसलिए क्योंकि श्रीलंका पहले भी चीन के साथ अपनी दोस्ती को भुगत चुका है। उदाहरण के तौर पर चीन ने श्रीलंका को हंबनटोटा पोर्ट को विकसित करने के लिए पहले तो भारी-भरकम लोन दिया, और बाद में जब श्रीलंका उस लोन को चुका पाने में असफल हुआ तो चीन ने उसी पोर्ट को 99 वर्षों के लिए लीज़ पर ले लिया। जब तक श्रीलंका चीन के इस जाल को समझ पाता, तब तक काफी देर हो चुकी थी। एक वक्त में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को चीन ने हाइजैक कर लिया था। श्रीलंका अब नहीं चाहता कि ऐसा दोबारा हो।
इसके साथ ही श्रीलंका यह भी भलि-भांति देख चुका है कि कोरोना के समय में चीन कैसे इस स्थिति का भरपूर आर्थिक और रणनीतिक फायदा जुटाने में लगा है। वह ना सिर्फ देशों को घटिया राहत सामाग्री एक्सपोर्ट कर रहा है, बल्कि उसके बदले में ऊंची दरों पर पैसा भी वसूल रहा है। अभी पूरी दुनिया में कारखाने बंद पड़े हैं और कोरोना से उभरने की वजह से चीन में वेंटिलेटर, मास्क और मेडिकल किट्स का उत्पादन किया जा रहा है। कोरोना से ग्रसित देशों को अभी सबसे ज़्यादा इन्हीं चीजों की ज़रूरत है। चीन इन देशों को ये सब चीज़ें बेचता है और फिर अपने आप को इनके दोस्त की तरह पेश करने की कोशिश करता है। कोरोना की तबाही के बाद जब इन देशों के पास पैसों की कमी होगी, तो चीन अपने इसी प्रभाव और नकली दोस्ती को दिखाकर इन्हें बड़े-बड़े लोन देगा। इस प्रकार जैसे उसने BRI के जरिये दुनिया के कई देशों को कर्ज़ जाल में फंसाया, वैसे ही अब भी वह कई देशों को अपने कोरोना-जाल में फंसा लेगा। इसी कारणवश अब श्रीलंका जैसे देश चीन की ओर मुंह मोड़ने से पहले भी 10 बार सोच रहे हैं। दुनिया का चीन पर से भरोसा पूरी तरह उठ चुका है और अब दक्षिण एशिया में भी चीन का प्रभाव खत्म होने की दिशा में अग्रसर है।
